रही अडिग सत्य पथ पर तो निश्चय ही स्वयंसिद्धा कहलाओगी। रही अडिग सत्य पथ पर तो निश्चय ही स्वयंसिद्धा कहलाओगी।
समय मुट्ठी की रेत सा फिसलता जा रहा है , हर लम्हा यूँ ही गुजरता जा रहा है, समय मुट्ठी की रेत सा फिसलता जा रहा है , हर लम्हा यूँ ही गुजरता जा रहा है,
कोई अनकही सिहरन हो हो सकता है तुम एक किरण हो कोई अनकही सिहरन हो हो सकता है तुम एक किरण हो
हे मानस के राजहंस तू चल उस देश जहाँ। हे मानस के राजहंस तू चल उस देश जहाँ।
तब भी अपने व्यवहार में नम्रता बनाए रखिए। तब भी अपने व्यवहार में नम्रता बनाए रखिए।
कल भी सूरज उगेगा नया सवेरा होगा, कल भी सूरज उगेगा नया सवेरा होगा,